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रक्षाबंधन (RakshaBandhan) क्यों मनाया जाता है, इसका महत्व और इससे जुड़ी कहानियाँ 

RakshaBandhan

रक्षाबंधन (RakshaBandhan) या राखी के पर्व के बारे में हर कोई जानता होगा, यह पर्व प्रत्येक वर्ष बड़े ही धूम – धाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के आने के कई दिनों पहले से ही बाज़ार रंग – बिरंगी राखियों से सजने लगते हैं, घरों में मिठाईयां और पकवान बनने शुरू हो जाते हैं और लोग नये – नये कपड़े भी ख़रीदते हैं। हिंदुओं के इस पर्व का इंतज़ार सभी को रहता है, इस दिन बहन अपने भाई को राखी बांधती है और दोनों एक दूसरे की जीवन भर रक्षा करने का प्रण देते हैं। यह पर्व कई सदियों से मनाया जा रहा है, इससे जुड़ी कई पौराणिक कहानियाँ भी हैं। इस लेख में हम इस पर्व के महत्व और इससे जुड़ी विभिन्न पौराणिक कथाओं के बारे में जानेंगे।  

रक्षाबंधन पर्व का महत्व 

रक्षाबंधन (RakshaBandhan) एक हिंदू पर्व है जो कि श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष सभी इस पर्व का पूरे हर्ष के साथ इंतज़ार करते हैं। यह पर्व भाई – बहन का पर्व है, इस दिन बहन अपने भाई को रक्षा सूत्र बांधती है और तिलक करती है। वहीं भाई अपनी बहन की जीवन भर रक्षा करने का वादा करता है। यह पर्व एक अकेला ऐसा पर्व है जो भाई – बहनों के प्रेम का प्रतीक तो है ही और साथ समाज के विभिन्न संबंधों को भी मज़बूत करता है। यह पर्व कई सदियों से चला आ रहा जिसकी कई पौराणिक कहानियाँ भी हैं जिनके बारे में हम आगे जानेंगे। 

रक्षाबंधन (RakshaBandhan)पर्व से जुड़ी पौराणिक कहानियाँ

कई पौराणिक कहानियाँ और प्रसंग हैं जो कि रक्षाबंधन (RakshaBandhan) के पर्व पर आधारित हैं। इस लेख में इन्हीं विभिन्न कहानियों और प्रसंगों के बारे में बात करेंगे। 

द्रौपदी और भगवान कृष्ण की कहानी

महाभारत कथा के अनुसार, शिशुपाल जो कि भगवान श्री कृष्ण की बुआ का लड़का था जिसे 100 अपराधों तक की माफ़ी थी। लेकिन उसके द्वारा 101 वें अपराध करने पर श्री कृष्ण ने अपने सुदर्शन द्वारा मृत्युदंड दिया। इस घटना के कारण भगवान श्री कृष्ण की उँगली कट गई थी जिससे निरन्तर रक्त स्राव हो रहा था। इस रक्त स्राव को रोकने के लिए द्रौपदी ने अपनी साड़ी से टुकड़ा फाड़कर श्री कृष्ण की उँगली में बांध दिया था। द्रौपदी के स्नेह को देखकर श्री कृष्ण ने उनकी रक्षा करने का वचन दिया था, यह कारण है कि द्रौपदी के चीर हरण के समय भगवान श्री कृष्ण ने असीमित लंबी साड़ी के माध्यम से उनकी रक्षा की थी। यह कहानी रक्षाबंधन (RakshaBandhan) के स्नेह को दर्शाती है।

महारानी कर्णावती की कहानी 

रक्षा बंधन पर्व पर आधारित अगली कहानी महारानी कर्णावती और बादशाह हुमायूँ की है। रानी कर्णावती चित्तौड़ की महारानी थी तथा महाराजा सांगा की विधवा थी। उनके दो पुत्र राणा रतन सिंह और विक्रमादित्य थे। पिता की मृत्यु के बाद राणा रतन सिंह ने चित्तौड़ के कार्यभार को सँभाला लेकिन इनकी भी मृत्यु के बाद विक्रमादित्य राजगद्दी पर बैठे। विक्रमादित्य के शासन के दौरान बहादुर शाह चित्तौड़ पर आक्रमण करने का उपाय बनाने लगा।

महारानी कर्णावती को यह ज्ञात था कि विक्रमादित्य की सेना इतनी मज़बूत नहीं कि वो बहादुर शाह की सेना से युद्ध कर सके। इसलिए चित्तौड़ को बचाने के लिए महारानी ने बादशाह हुमायूँ को राखी के साथ अपनी तथा चित्तौड़ की रक्षा का संदेश भेजा। जिसमें उन्होंने लिखा की वे हुमायूँ को अपना भाई मानते हुए उनसे अपनी बहन, महारानी कर्णावती की रक्षा करने की उम्मीद करती हैं। यह रक्षा सूत्र और पत्र देखकर बादशाह हुमायूँ अत्यंत भाव-विभोर हो गये और उन्होंने बहादुर शाह से चित्तौड़ और महारानी दोनों की रक्षा की। बादशाह हुमायूँ ने महारानी का धर्म-भाई बनकर रानी द्वारा भेजे गये रक्षाबंधन (RakshaBandhan) का मान रखा।

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माता लक्ष्मी और राजा – बलि की कथा 

अगली कथा माता लक्ष्मी और राजा बलि की है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार असुरों के राजा बलि यज्ञ कर रहे थे, ऐसे में भगवान विष्णु वामन रूप में राजा बलि के पास पहुँचे। राजा बलि ने वामन से भिक्षा लेने के लिए कहा, जिसमें वामन रूपी भगवान विष्णु ने उनसे तीन पग ज़मीन माँगी। वामन के यह माँगने पर राजा बलि ने उन्हें तीन पग ज़मीन देने का वचन दिया। वचन मिलने के पश्चात वामन रूपी भगवान विष्णु ने तीन पग ज़मीन नापना शुरू कर दिया। वामन ने जैसे की पहला पग रखा तो संपूर्ण धरती को उन्होंने नाप लिया, दूसरे पग में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को नाप लिया, जैसे ही तीसरा पग नापने की बात आयी तो वामन ने राजा बलि से पूछा की तीसरा पग कहाँ रखूँ, इस प्रश्न पर राजा बलि ने अपना सिर उनके चरणों में रख दिया।

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ऐसा देखकर भगवान विष्णु खुश हुए और उनसे वरदान माँगने को कहा, वरदान में राजा बलि ने वामन रूपी भगवान विष्णु को अपने साथ रहने के लिए कहा। भगवान विष्णु को यह वरदान देना ही पड़ा और जिसके कारण भगवान विष्णु स्वर्ग वापस न लौट सके। यह देखकर माता – लक्ष्मी विचलित हो उठीं। इसके निदान के लिए माता लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांध दी, राखी बांधने के पश्चात राजा बलि ने उनसे उपहार माँगने के लिए कहा, जिसमें माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को माँग लिया। 

भाई – बहन के अटूट प्रेम के प्रतीक इस पर्व, रक्षाबंधन (RakshaBandhan) को नेपाल में भी मनाया जाता है, जहां इस पर्व को जनेऊ पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा इस पर्व को पश्चिम बंगाल में महागुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस वर्ष रक्षाबंधन का यह पर्व 30 अगस्त को मनाया जायेगा।

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