AI Chips की बढ़ती मांग से बढ़ रही है बिजली की खपत और कार्बन उत्सर्जन: Greenpeace रिपोर्ट का खुलासा
Artificial Intelligence की कीमत पर्यावरण चुका रहा है?
दुनिया में Artificial Intelligence (AI) का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। हर क्षेत्र में इसका उपयोग हो रहा है—चाहे वो healthtech हो, finance, education, या फिर marketing। लेकिन इस तकनीकी क्रांति की एक कीमत है, और वह कीमत है बढ़ती हुई ऊर्जा खपत (electricity consumption) और पर्यावरणीय संकट (environmental crisis)।
हाल ही में प्रकाशित Greenpeace रिपोर्ट में यह साफ़ तौर पर बताया गया है कि किस तरह से AI chips की soaring demand के चलते global power usage में तेज़ी से उछाल आया है। विशेष रूप से उन देशों में जहां अभी भी बिजली उत्पादन मुख्य रूप से fossil fuels पर आधारित है, वहां स्थिति और भी चिंताजनक है।
AI Chip Manufacturing: बिजली की भूख
Greenpeace ने चेतावनी दी है कि 2024 में AI chipmaking ने लगभग 984 GWh (gigawatt hours) बिजली की खपत की, जो कि 2023 की तुलना में 350% ज्यादा है। इससे उत्पन्न carbon emissions भी 99,200 metric tons से बढ़कर 453,600 metric tons तक पहुंच गए हैं।
रिपोर्ट में बताया गया कि एक बड़ा semiconductor foundry प्रति घंटे 100 megawatt-hours तक की बिजली की खपत कर सकता है, जो कि इसे दुनिया के सबसे energy-intensive industries में से एक बनाता है।
East Asia: AI Chips का प्रमुख केंद्र
Global AI chip production का बड़ा हिस्सा East Asia में केंद्रित है। देश जैसे Taiwan, South Korea और Japan AI चिप्स के बड़े निर्माता हैं, लेकिन इन देशों की energy infrastructure अभी भी बड़ी हद तक coal और natural gas पर आधारित है।
इन देशों में chip manufacturing के दौरान जो बिजली खर्च होती है, वह मुख्य रूप से non-renewable sources से आती है, जिससे greenhouse gas emissions में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है।
2040 तक की भविष्यवाणी: बिजली की मांग में विस्फोटक वृद्धि
Greenpeace का अनुमान है कि अगर मौजूदा रफ्तार से AI chip production बढ़ता रहा, तो 2030 तक इसकी सालाना बिजली खपत 37,238 GWh तक पहुंच सकती है। यह आंकड़ा इतना बड़ा है कि यह Ireland के पूरे देश की सालाना बिजली खपत से भी ज्यादा है।
यह भविष्यवाणी दर्शाती है कि अगर समय रहते उपाय नहीं किए गए, तो AI revolution हमारे पर्यावरण के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।
Tech Giants की भूमिका और जिम्मेदारी
Greenpeace की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भले ही टेक्नोलॉजी कंपनियां जैसे Nvidia, Microsoft, Meta, Google अरबों डॉलर AI infrastructure में निवेश कर रही हैं, लेकिन renewable energy adoption की दिशा में उनके प्रयास अभी भी बहुत सीमित हैं।
रिपोर्ट में कहा गया:
“Tech companies को चाहिए कि वे अपने सभी suppliers को 100% renewable energy की ओर ले जाएं और 2030 तक पूरी supply chain को green बनाएं।”
TSMC (Taiwan Semiconductor Manufacturing Company) जैसे कुछ chipmakers ने जरूर renewable sources की ओर कदम बढ़ाए हैं, लेकिन Greenpeace का कहना है कि यह प्रक्रिया बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है।
क्या है समाधान? (Solutions to reduce AI’s carbon footprint)
AI तकनीक को sustainable बनाने के लिए कुछ आवश्यक कदम हैं जिन्हें tech companies और governments मिलकर उठा सकते हैं:
1. Renewable Energy Transition:
Chip manufacturing कंपनियों को solar, wind और hydro power जैसी ऊर्जा स्रोतों की ओर ट्रांजिशन करना होगा।
2. Energy Efficient Infrastructure:
AI data centers को energy-efficient designs के साथ तैयार करना होगा ताकि बिजली की खपत कम से कम हो।
3. Carbon Neutral Goals:
Tech companies को स्पष्ट और ठोस carbon neutrality goals सेट करने होंगे, और इन्हें समयबद्ध तरीके से पूरा करना होगा।
4. Policy Level Intervention:
सरकारों को ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो कंपनियों को green energy की ओर प्रेरित करें और carbon emissions पर सख्त नियंत्रण रखें।
5. Transparency in Emissions:
प्रत्येक कंपनी को अपने carbon footprint का सार्वजनिक विवरण देना चाहिए, जिससे पर्यावरणीय जवाबदेही तय की जा सके।
निष्कर्ष: तकनीकी प्रगति बनाम पर्यावरणीय जिम्मेदारी
AI और उसके द्वारा संचालित टेक्नोलॉजी की दुनिया निश्चित ही रोमांचक है, लेकिन इसका environmental cost हमें अनदेखा नहीं करना चाहिए। Artificial Intelligence chips की मांग बढ़ना स्वाभाविक है, लेकिन यह मांग यदि unsustainable energy sources के माध्यम से पूरी की जाएगी, तो इसका सीधा प्रभाव हमारी जलवायु, हमारे संसाधनों और अंततः हमारे भविष्य पर पड़ेगा।
AI chips की शक्ति को harness करना है, लेकिन उस शक्ति को सतत और जिम्मेदार तरीके से प्रयोग करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।