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Bhasha Ki Paribhasha | भाषा की परिभाषा, आधार और प्रकार

भाषा की परिभाषा

Bhasha Ki Paribhasha – भाषा एक ऐसा माध्यम है, जिसके द्वारा एक व्यक्ति अपनी भावनाएं किसी अन्य व्यक्ति से व्यक्त कर सकता है तथा उसकी भावनाएं समझ सकता है। भाषा किसी संस्कृति और समुदाय का मूल रूप और पहचान होती है। भाषा सिर्फ एक ही रूप में सीमीत नहीं है, अपितु इसके कई रूप और आधार हैं। भाषा के बारें और जानने से पहले इसके महत्तव के बारें समझते हैं।

Bhasha Ki Paribhasha (भाषा की परिभाषा), प्रकृति  और महत्तव

भाषा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘भाष्’ धातु से हुई है जिसका अभिप्राय ‘बोलना’ है किन्तु साधारण अर्थ में भाषा किसे कहते हैं? भाषा क्या है? भाषा, एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से हम अपने विचारों और भावनाओं का आदान – प्रदान कर सकते हैं।भाषा के माध्यम से ही हम किसी और की बातों को भी समझ पाते हैं। भाषा का सिर्फ़ एक ही रूप नहीं होता है बल्कि भाषा कई रूप होते हैं। जैसे कि मुंह से बोल गए सार्थक शब्दों का समूह एक भाषा है, अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए पुस्तक पर लिखे गए शब्द भी एक भाषा है, और इशारों से अपने विचारों को समझाना भी एक भाषा है। 

भाषा की प्रकृति

“भाषा किसे कहते हैं” के तात्पर्य को विस्तार से समझने के लिए जरूरी है भाषा की प्रकृति के बारें में जानना आवश्यक है। भाषा की प्रकृति मनुष्य के अंतःक्रिया और विचारों पर निर्भर करती हैं, प्रगति की ओर बढ़ता हुआ मनुष्य समाज में रहते हुए नई – नई चीज़ें सीखता है। इसी प्रकार भाषा भी प्रतिदिन प्रगति करती हैं और भाषा भी मनुष्य की विचारों की तरह विकसित और परिवर्तित होती रहती है। 

भाषा का महत्तव

भाषा का आधार

“भाषा किसे कहते हैं” के तात्पर्य के भाषा के विभिन्न आधारों से भी समझा जा सकता है। भाषा को दो आधारों निम्नलिखित हैं:

भाषा के भौतिक आधार के अंतर्गत वे तत्व आते हैं जिनसे भाषा निर्मित होती है, जिसके माध्यम से भाषा का आदान – प्रदान होता है। उदाहरणनुसार, भाषा शुद्ध रूप में विभिन्न शब्दों, अक्षरों, मात्राओं, चिन्हों और इत्यादि के माध्यम से बनती है। इन शब्दों का शुद्ध उच्चारण अपने मुख, नाक, कंठा और फेफडों से किया जाता है तथा सामने वाला इन शब्दों के समूह को कानों से सुनता है। इसके अलावा लिखित भाषा में उपयोग होने विभिन्न भौतिक सामाग्री भी भौतिक आधार में आती है, जैसे की पुस्तक, कलम इत्यादि।

भाषा के मानसिक आधार में हमारे विचार, भाव, समझ, ज्ञान – विज्ञान इत्यादि आते हैं। यह मानसिक आधार की भाषा का मूल आधार है।  

भाषा के प्रकार

भाषा को तीन मुख्य प्रकारों में बांटा जा सकता है –

जब हम बोलकर अपने भावों, विचारों का आदान – प्रदान करते हैं तो इसे मौखिक भाषा कहते हैं। उदाहरणनुसार, टेलीफोन पर बातचीत करना, वाद – विवाद इत्यादि। भाषा के इस रूप में वक्ता और श्रोता का वार्तालाप के समय साथ होना जरूरी है। मौखिक भाषा को भाषा का मूल प्रकार माना जा सकता है क्यूंकि सर्वप्रथम मनुष्य का विकास मौखिक भाषा के माध्यम से ही हुआ है। मौखिक भाषा का भौतिक आधार ध्वनि है। 

वहीं जब हम अपने विचारों को लिखकर जाहिर करते हैं तथा किसी अन्य के विचार पढ़कर समझते हैं तो उसे लिखित भाषा कहते हैं। भाषा के इस रूप में लेखक और पाठक का स्थान पर होना आवश्यक नहीं है। उदाहरणनुसार पत्र लिखना, ई -मेल लिखना, पुस्तकें इत्यादि। लिखित भाषा, भाषा का एक स्थायी प्रकार है जिसके माध्यम से समाज का इतिहास, संस्कृति, ज्ञान – विज्ञान लंबे समय तक संरक्षित रहता है। लिखित भाषा का भौतिक आधार लिपि है। 

जब हम अपने विचारों को इशारों द्वारा व्यक्त करते हैं तो उसे सांकेतिक भाषा कहते हैं। उदाहरणनुसार मूक और बधिर के लिए सांकेतिक भाषा का उपयोग किया जाता है। इस भाषा को समझने और सीखने के लिए अलग से शिक्षा दी जाती है। इस भाषा के लिये, संकेतों से समझाने वाला तथा संकेतों को समझने वाला आमने – सामने होना चाहिए। 

विभिन्न क्षेत्र और प्रांत के आधार पर भाषा के विविध रूप हैं और इस आधार पर भाषा को तीन प्रमुख रूप में बांटा जाता है :

भाषा का मूल रूप  – मूल रूप का अर्थ होता है, भाषा को उसके वास्तविक रूप में उपयोग या व्यक्त करना, परंतु आज के समय में भाषा के मूल रूप का अस्तित्व संभव नहीं है। 

उपभाषा या विभाषा – किसी प्रांत और क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा को उपभाषा या विभाषा कहते हैं, जहां सभी शासन संबन्धित कार्य उसी भाषा में होते हों। उदाहरणनुसार हिन्दी, मराठी, तेलेगु, तमिल इत्यादि। 

बोली – किसी प्रांत के छोटे से क्षेत्र में बोली जाने वाली स्थानीय भाषा को बोली कहते है जो की किसी भी शासनीय कार्य के लिए उपयोग नहीं की जाती हो। 

सम्पूर्ण भारतवर्ष में कुल 22 भाषाएँ बोली जाती हैं और 2000 से अधिक स्थानीय भाषाएँ बोली जाती हैं। भारत के लगभग सभी राज्य (भारत में कुल 28 राज्य हैं) अपनी – अपनी भाषाओं से भिन्न किए जाते हैं, और प्रत्येक राज्यों में अपनी स्थानीय भाषाएँ भी होती हैं।

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