Akbar-Birbal Ki Kahaniyan

Akbar-Birbal Ki Kahaniyan | अकबर बीरबल की कहानियाँ

प्रसिद्ध मुगल शासक अकबर तथा उनके दरबारी कवि व नौरत्न मंत्री बीरबल के बीच कई ऐसी घटनाएं और किस्से हुए जो प्रेरणादायक है तथा जीवन जीने की एक सीख देतें है। Akbar-Birbal Ki Kahaniyan बड़ी ही रोचकता से बच्चों और युवाओं द्वारा सुनी जाती है जिसकी वजह से कई ऐसी कहानियाँ है जो अकबर और बीरबल के बीच नही हुई है अर्थात् मनगढंत है परन्तु अत्यधिक प्रचलित है। अकबर बीरबल की कहानियाँ में बीरबल की बुद्धिमत्ता, हाजिर-जवाबी और चतुराई का बखूबी जिक्र होता है, जिनसे हम भी सीख लेकर अपने-अपने जीवन में सफलता पा सकते हैं। ये कहानियाँ विभिन्न सीखों के साथ – साथ नैतिकता के रूप को भी दर्शाते हैं इसलिए ये कहानियाँ एक प्रकार से नैतिक कहानियाँ (top 10 moral stories) भी हैं।

1. चोर की दाढ़ी में तिनका– Akbar-Birbal Ki Kahaniyan

chor ki dadhi me tinka

एक समय की बात है, बादशाह अकबर की कीमती अंगूठी गुम हो गयी, उन्होंने अपनी अंगूठी हर जगह खोजी, परंतु उन्हें अंगूठी नहीं मिली। अकबर ने अपनी अंगूठी गुम हो जाने का जिक्र बीरबल से किया तो बीरबल ने बादशाह से पूछा, “बादशाह, आपने अपनी अंगूठी कहाँ रखी थी?  इस प्रश्न का जवाब देते हुए अकबर ने कहा,  “सुबह गुसलखाना जाने से पहले अंगूठी उतारकर अलमारी में रखी थी और वापस आने पर मुझे मेरी अंगूठी अलमारी में नहीं मिली। यह सुनने पर बीरबल यकीन हो गया की बादशाह की अंगूठी गुम नहीं हुई है बल्कि चोरी हुई है और यह कार्य बादशाह के कमरे में साफ – सफाई करने वाले कर्मचारियों का हो सकता है।

इस घटना की तफ़्तीश के लिए चोरी वाली सुबह बादशाह के कमरे में आए सभी कर्मचारियों को बीरबल ने बादशाह अकबर के कमरे में बुलाया। सभी कर्मचारियों के कमरे में आ जाने पर बीरबल ने चोरी वाली घटना को दोहराया और कहा, “मुझे पता है की चोर तुम लोगों में से कोई एक है, लेकिन चोर कौन है? यह प्रश्न में तुम सभी से नहीं पूछूंगा बल्कि यह प्रश्न में अलमारी से पूछूंगा क्यूंकी अंगूठी वही से चोरी हुई है”। बीरबल अलमारी के पास जाकर अलमारी से धीरे – धीरे बात करने लगे और ऐसा स्वांग रचाने लगे की जैसे उन्हें पता चल गया है की चोर कौन है। 

बीरबल कर्मचारियों की तरफ देखते हुए बोले, “ मुझे अलमारी ने बता दिया है की चोर कौन है क्यूंकी जो भी चोर है उसकी दाढ़ी में तिनका फंसा हुआ है”। ऐसा सुनते हुए सभी कर्मचारियों में से एक कर्मचारी अपनी दाढ़ी पर हाथ सहलाते हुए तिनका ढूँढने लग गया, बीरबल की नज़र कर्मचारियों पर ही थी और ऐसा करते हुए उन्होंने चोरी करने वाले कर्मचारी को पकड़ लिया। सख्ती से पूछताछ करने पर उस कर्मचारी ने चोरी करने का गुनाह कबूल कर लिया। बादशाह अकबर अपनी गुम हुई अंगूठी को वापस पाकर बहुत खुश हुए। 

इस कहानी से मिलने वाली सीख –

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की समस्या कितनी भी जटिल क्यूँ न हो हमे धैर्य के साथ अपनी बुद्धिमत्ता का उपयोग करते हुए समस्या का हल ढूँढना चाहिए और कभी भी चोरी नहीं करनी चाहिए।  

2. बीरबल की खिचड़ीअकबर बीरबल की कहानियाँ

birbal ki khicdi

एक बार की बात है बादशाह अकबर अपने मंत्रियों और दरबारियों के साथ दरबार में बैठे हुए थे तभी उन्होंने के चुनौती का ऐलान किया। चुनौती का ऐलान करते हुए अकबर ने कहा, “जो भी व्यक्ति इस ठंडे मौसम में पूरी रात ठंडे पानी के तालाब में खड़े रहकर गुजारेगा उसे में सोने के 1000 अशर्फियों से पुरस्कृत करूंगा”। 

बादशाह का यह ऐलान आग की तरह उनके साम्राज्य में फैल गया, इस चुनौती के बारें में सुनकर एक बूढ़ा गरीब किसान बादशाह के पास पहुंचा और कहा, “ बादशाह, मैं यह चुनौती स्वीकार करता हूँ और मैं पूरी रात उस ठंडे पानी के तालाब में खड़ा रहूँगा”। 

अकबर ने उसे अनुमति देते हुए तालाब में जाकर खड़े होने के लिए कहा और वह बूढ़ा किसान कोई बेईमानी न कर सके इसके लिए बादशाह के सिपाहियों को तालाब के पास पेहरा देने के लिए कहा। पूरी रात वह किसान उस तालाब में खड़ा रहा और महल के खिड़की पर जलते हुए दीपक को टकटकी लगाकर देखता रहा। तालाब में खड़े रहकर वह किसान सोच रहा था की इनाम में मिलने वाली अशर्फियों से वह अपनी बेटी का विवाह कर सकेगा।

बूढ़ा किसान चुनौती को पूरा करने में सफल हुआ और वह अपना इनाम लेने दरबार पहुँचा, दरबार पहुँचने पर बादशाह अकबर ने उससे पूछा, तुम पूरी रात उस ठंडे तालाब में कैसे खड़े रहे?” इस प्रश्न का जवाब देते हुए किसान के बोला, “हुज़ूर, महल के खिड़की पर जलते हुए दीपक को देखते हुए मैं पूरी रात तालाब में खड़ा रहा”। यह सुनते ही बादशाह ने उससे कहा, “तुमने बेईमानी की है क्यूंकी तुमने दीपक की गर्मी के सहारे पूरी रात गुजारी है और इस कारण तुम्हें इनाम नहीं दिया जाएगा”। यह सुनकर किसान हताश हुआ और वह से चला गया। 

कुछ दिन पश्चात बादशाह अकबर और बीरबल शिकार पर गए हुए थे, वहीं बादशाह को भूख लग गयी और यह जानते ही बीरबल बादशाह के लिए खिचड़ी बनाने में लग गया। बीरबल ने लकड़ियाँ जलायी और खिचड़ी की हांडी को आग से बहुत ऊपर लटका दिया। यह देखकर अकबर ने बीरबल से कहा, “बीरबल खिचड़ी की हांडी बहुत ऊपर बंधी हुई है ऐसे तो खिचड़ी नहीं पकेगी”। यह सुनकर बीरबल ने कहा, “जनाब, आप व्यर्थ परेशान हो रहे हैं खिचड़ी अवश्य पकेगी”।

खिचड़ी पकते हुए दोपहर से शाम हो गयी और रात होने को आई, अकबर ने पुनः कहा की खिचड़ी इस तरह से नहीं पकेगी क्यूंकी आग की गर्मी हांडी तक नहीं पहुँच रही है। तब बीरबल ने कहा, “ जिस तरह बूढ़ा किसान इतनी दूर से दीपक की गर्मी के सहारे तालाब में खड़ा रह सकता है उसी प्रकार इस खिचड़ी की हांडी को इतनी दूर से भी आग की गर्मी मिल जाएगी”। यह सुनकर बादशाह अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ और दूसरे दिन दरबार पहुँच कर उस बूढ़े किसान को इनाम से पुरस्कृत किया।  

इस कहानी से मिलने वाली सीख –

इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है की किसी के परिश्रम को जाने बिना हमें उनकी सफलता पर गलत राय नहीं देनी चाहिए। 

3. सबसे बड़ा हथियारअकबर बीरबल की कहानियाँ

sabse bada hathiyar- Akbar-Birbal Ki Kahaniyan
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एक बार बादशाह अकबर और बीरबल बगीचे में टहल रहे थे तभी बादशाह ने बीरबल से एक प्रश्न पूछा, “बीरबल, तुम्हारे हिसाब से सबसे बड़ा हथियार क्या है?” कुछ देर सोचने के बाद बीरबल ने उत्तर देते हुए कहा, “ हुज़ूर, मेरे हिसाब से सबसे बड़ा हथियार आत्मविश्वास है”। यह बात बादशाह को समझ नहीं परंतु उस समय उन्होंने बीरबल से कुछ नहीं कहा और मन ही मन समय आने पर इस बात को परखने के बारें में सोचा।  

कुछ समय पश्चात बादशाह के साम्राज्य में एक पागल हाथी ने बहुत आतंक मचा रखा था जिसे बहुत मुश्किलों के साथ बंधी बनाया गया था। यह बात जानकार बादशाह ने सोचा की यह बहुत अच्छा मौका है बीरबल की बात को परखने का, यह सोचते ही वे महावत के पास पहुंचे और उससे कहा, “ सुनो महावत, जब तुम्हें बीरबल आते हुए दिखाई दे तो यह पागल हाथी उनकी तरफ छोड़ देना”। यह सुनकर महावत बहुत चौक गया परंतु बादशाह का आदेश वह कैसे टाल सकता था। 

थोड़ी ही देर में महावत को बीरबल आते हुए दिखे और बादशाह के आदेश का पालन करते हुए उसने उस पागल हाथी को बीरबल की तरफ छोड़ दिया। पागल हाथी को अपनी ओर आते हुए देखकर बीरबल घबरा गए और अपने बचाव में इधर – उधर भागने लगे।

अचानक बीरबल को अकबर के साथ हुई वार्तालाप का ध्यान आया और उन्हें ज्ञात हुआ की बादशाह उनकी परीक्षा ले रहे हैं। खुद को बचाने के लिए कुछ तो करना ही था तभी बीरबल को एक कुत्ता दिखा उन्होंने तुरंत उस कुत्ते को पिछली टांगों से पकड़कर हाथी के तरफ फेंका और वह कुत्ता भौंकते हुए हाथी पर जा गिरा। पागल हाथी यह देखकर डर गया और उसने अपना रास्ता बदल लिया। इस प्रकार बीरबल ने पागल हाथी से अपनी जान बचाई। 

बीरबल के साथ घटी इस घटना के बारें में बादशाह को पता चला और उन्हें यह भी पता चला की बीरबल ने बहादुरी और सम्पूर्ण आत्मविश्वास के साथ पागल हाथी की समस्या का सामना किया। बीरबल की परीक्षा लेने बाद बादशाह को एहसास हुआ की सबसे बड़ा हथियार आत्मविश्वास है। 

इस कहानी से मिलने वाली सीख –

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की समस्या कितनी ही बड़ी ही क्यूँ न हो हमें उम्मीद नहीं खोनी चाहिए और पूरे आत्मविश्वास के साथ उसको हल करने की कोशिश करनी चाहिए। 

4. अकबर के तीन प्रश्न– Akbar-Birbal Ki Kahaniyan

akbar ke teen prasan- Akbar-Birbal Ki Kahaniyan
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एक बार बादशाह अकबर अपने मंत्रियों और दरबारियों के साथ अपने दरबार में बैठे थे तभी उनको बीरबल की बुद्धिमत्ता परखने को सूझी। अकबर के बीरबल से कहा, “बीरबल, मेरे मन में कुछ प्रश्न है और मुझे उनका उत्तर भी नहीं मिल रहा जिससे मेरा मन बहुत की व्याकुल है”। यह सुनते ही बीरबल ने कहा, “ जहाँपनाह, वे प्रश्न कौन से हैं, मुझे बताइये”।

अकबर ने कहा, “बीरबल, मैं तुम्हें उन प्रश्नों के बारें में अवश्य बताऊंगा और अगर तुमने सही जवाब दिये तो मैं तुमने इनाम भी दूंगा परंतु ध्यान रहे की यदि जवाब गलत हुए तो तुम्हें सजा भी मिल सकती है”। यह सुनकर बीरबल ने हाँ में सिर हिलाया और अकबर के प्रश्न सुनने की चेष्टा जताई। अकबर ने अपने तीन प्रश्न बीरबल के सामने रखते हुआ कहा,” बीरबल मेरा पहला प्रश्न – ईश्वर कहाँ रहता है? दूसरा प्रश्न – ईश्वर कैसे मिलता है? और तीसरा प्रश्न – ईश्वर क्या करता है”? यह सुनकर बीरबल ने सभी सवालों के उत्तर अगले दिन देने के लिए कहा। 

अगले दिन बीरबल बादशाह के पास पहुंचे और कहा, “बादशाह, आज मैं आपके सभी सवालों के उत्तर दूंगा, परंतु उसके पहले क्या आप एक गिलास मीठा दूध मँगवाने की आज्ञा दे सकते हैं”।  बादशाह के आज्ञा देते ही दूध वहाँ आ जाता और बीरबल अकबर से उस दूध को पीने के लिए कहते हैं। अकबर के दूध पीते हैं बीरबल उनसे पूछते हैं, “ जनाब, क्या दूध मीठा था?” अकबर हाँ में जवाब देते हैं फिर बीरबल अकबर से पूछते हैं, “परंतु दूध में चीनी कहाँ थी?” इसके उत्तर में अकबर बोलते हैं, “ बीरबल, ये कैसा प्रश्न है, चीनी तो दूध में घुली हुई थी”।

तब बीरबल बोलते हैं, “ हुज़ूर, यही आपके पहले प्रश्न का उत्तर है, जिस प्रकार चीनी दूध में घुली हुयी थी परंतु आपको दिख नहीं रही थी, उसी प्रकार ईश्वर भी संसार के सभी प्राणी, जीवों और वस्तुओं में घुले हुए हैं”। पहले प्रश्न का जवाब सुनकर अकबर बहुत खुश हुए। 

दूसरे प्रश्न का जवाब देने से पहले बीरबल से अकबर से दही मंगाने की अनुमति मांगी और दही के आते ही बीरबल ने अकबर से पूछा, “ हुज़ूर क्या आपको इसमे मक्खन दिख रहा है”। इसका उत्तर देते हुए अकबर ने कहा, “मक्खन के लिए तो दही को मथना पड़ेगा न”। तभी बीरबल ने कहा, “ जनाब, इसी तरह ईश्वर भी हमारे मन में हैं और उनको अपने में ढूंढने के लिए हमें अपने अन्तर्मन का मंथन करना पड़ेगा”। यह जावाब सुनकर भी अकबर बहुत खुश हुए। 

अब तीसरे प्रश्न का जवाब देते हुए बीरबल के अकबर से कहा की जनाब इस प्रश्न के उत्तर के लिये आपको मुझे अपना गुरु मानना होगा। अकबर ने हाँ में सिर हिलाया फिर बीरबल ने कहा, “ जनाब, गुरु का स्थान शिष्य से हमेशा ऊंचा होता है इसलिए आप मेरी जगह पर आयें और मैं आपकी जगह पर बैठूँगा। यह सुनकर अकबर नीचे आकार खड़े हो गए और बीरबल उनकी गद्दी पर बैठ गए। बीरबल फिर बोले, “जनाब यह आपके तीसरे प्रश्न का उत्तर है, ईश्वर तनिक समय में राजा को रंक और रंक को राजा बना सकता है”। बीरबल के सभी प्रश्नों के उत्तर सुनकर बादशाह बहुत खुश हुए और उन्हे इनाम से नवाजा। 

इस कहानी से मिलने वाली सीख –

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हर प्रश्न का वास्तविकता से जुड़ा हुआ उत्तर होता है। हमेशा संयम और बुद्धिमत्ता से काम लेना चाहिए तथा ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए। 

5. असली माँ कौन?अकबर बीरबल की कहानियाँ

asli maa kaun- Akbar-Birbal Ki Kahaniyan

एक बार की बात है, बादशाह अकबर के दरबार में बहुत अजीब सा मुक़द्दमा आया, दो औरतें दो साल एक छोटे से बच्चे से साथ रोते हुए बादशाह के दरबार में पहुंची और न्याय की गुहार करने लगी। बादशाह ने समस्या जानने की कोशिश की तो पता चला की दोनों औरतें खुद को उस बच्चे की माँ बता रही थी। यह सुनकर बादशाह असमंजस में पड़ गए और सोचने लग गए की कैसे कैसे पता लागया जाये की असली माँ कौन है? इस समस्या का समाधान निकालने के लिए उन्होंने बीरबल से कहा की पता करो असली माँ कौन है?

कुछ देर तक सोचने के बाद बीरबल अपनी जगह से खड़े हुए और अकबर से जल्लाद को दरबार में बुल्लाने की अनुमति मांगी। अकबर के जल्लाद को दरबार में आने की अनुमति दी, जल्लाद के आने के बाद बीरबल ने कहा, “ मुझे इन दोनों औरतों की समस्या का समाधान मिल गया है”।

बीरबल ने औरतों की तरफ देखते हुए कहा, “ यह जल्लाद इस प्यारे से बच्चे के दो टुकड़े कर देगा और तुम दोनों बच्चे के एक – एक टुकड़े को ले लेना, क्या तुम दोनों यह समाधान मंजूर है?” यह समाधान सुनते ही उन दो औरतों में से एक ने बच्चे के दो टुकड़े करने की अनुमति दी परंतु दूसरी औरत रोने लगी और उसने कहा, “ जनाब, इस बच्चे के दो टुकड़े न करें, मुझे बच्चा नहीं चाहिए आप यह बच्चा इस औरत को दे दें”। 

यह मंज़र देखते ही बीरबल ने बच्चे की टुकड़े करने की मंजूरी देनी वाली औरत को गिरफ्तार करने के लिए कहा और रोती हुई औरत को उसका बच्चा सौंप दिया। दोषी औरत से पूछताछ करने पर पता चला की बीरबल का निर्णय सही था। बीरबल की इस चतुराई को देखकर बादशाह बहुत खुश हुए और उन्होंने बीरबल से पूछा, “बीरबल तुम्हें कैसे पता चला की असली माँ कौन है?” इस प्रश्न के उत्तर में बीरबल के कहा, “जनाब, माँ हमेशा अपने बच्चे की सभी परेशानियों को अपने ऊपर ले लेती है वह अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए कुछ भी कर सकती है”। यह सुनकर अकबर अत्यंत प्रश्न हुए। 

इस कहानी से मिलने वाली सीख –

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की कभी भी झूठ बोलकर किसी अन्य की चीजों को अपना नहीं बताना चाहिए, क्यूंकी सच किसी न किसी तरह से उजागर हो ही जाता है।  

6. बीरबल और चोर– Akbar-Birbal Ki Kahaniyan

birbal aur chor- Akbar-Birbal Ki Kahaniyan
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एक बार की बात है बादशाह अकबर के साम्राज्य में एक बड़े व्यापारी के घर कुछ कीमती सामान की चोरी हो गयी। उस व्यापारी ने बहुत कोशिश की कि वह चोर का पता लगा सके लेकिन वह पता न लगा सका। वह व्यापारी यह दुखड़ा लेकर बादशाह के पास पहुंचा, बादशाह ने बीरबल को बुलाया फिर बीरबल और बादशाह दोनों ने मिलकर उसकी समस्या सुनी। अकबर ने बीरबल को व्यापारी की समस्या को दूर करने का आदेश दिया। व्यापारी की चोरी की बात बताते हुए यह भी कहा था की उसे शक की उसके घर में कार्य कर रहे नौकरों में से किसी ने चोरी की है। 

चोर को पकड़ने के लिए बीरबल ने व्यापारी के घर कार्य कर रहे सभी नौकरों को बुलाया। सभी नौकरों के आ जाने के बाद बीरबल ने एक समान लकड़ियाँ सभी को पकड़ाते हुए कहा, “आप सभी में से जो भी चोर है उसकी लकड़ी रात में दो इंच बड़ी हो जाएगी”। इतना कहने के बाद बीरबल ने सिपाहियों को आदेश दिया की सभी नौकरों को इनकी लकड़ियों के साथ जेल में बंद कर दिया जाये जिससे चोर भाग न सके। सभी नौकरों को जेल में बंद कर दिया गया। 

अगले दिन बीरबल व्यापारी के साथ नौकरों के पास उनकी लकड़ी का मुआवना करने पहुंचे, सभी नौकर एक लाइन में अपनी – अपनी लकड़ी पकड़े हुए खड़े थे। तभी बीरबल की नज़र एक नौकर पर जाती है जिसकी लकड़ी सभी की तुलना में दो इंच छोटी थी। बीरबल ने उस नौकर को गिरफ्तार करने का आदेश दिया और इस तरह उन्होंने चोर को पकड़ लिया। 

बादशाह ने बीरबल से पूछा, बीरबल, “तुम्हें कैसे पता चला की वह नौकर ही चोर है?” इस प्रश्न के उत्तर में बीरबल ने कहा, “हुज़ूर, लकड़ी कभी भी रातों – रात नहीं बढ़ती, लेकिन उस नौकर को डर था की उसकी लकड़ी कहीं दो इंच बढ़ न जाये इसलिए उसने अपनी लकड़ी दो इंच छोटी कर ली जिससे उसकी लकड़ी की लंबाई सभी लकड़ियों के समान रहे। उसकी इस हरकत की वजह से वह नौकर पकड़ा गया”। बीरबल की इस चतुराई और चालाकी से अकबर बहुत अचंभित और प्रसन्न हुए।

इस कहानी से मिलने वाली सीख –

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की सत्य को कितना भी छुपाया जाये, सत्य कभी न कभी उजागर हो ही जाता है और सत्य तथा असत्य में हमेशा सत्य की विजय होती है। 

7. आधी धूप – आधी छाया | अकबर बीरबल की कहानियाँ

aadhi dhoop aadhi chaya- Akbar-Birbal Ki Kahaniyan
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एक बार बादशाह अकबर किसी कारण बीरबल से बहुत ज्यादा नाराज हो गए और इसी नाराजगी में उन्होंने बीरबल को राज्य छोड़ने का आदेश दे दिया। बादशाह के आदेश का पालन करते हुए बीरबल राज्य छोड़कर चले गए। बहुत दिन बीत गए, बादशाह का गुस्सा भी अब शांत हो चुका था और अब उन्हें अपने मित्र बीरबल की याद सताने लगी। ऐसे में अकबर ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया की वे बीरबल को ढूंढकर वापस ले आए लेकिन सिपाहियों को बीरबल कहीं न मिलें।  

बीरबल को राज्य में वापस बुलाने के लिए बादशाह अकबर को एक युक्ति सूझी, उन्होंने सब जगह यह ऐलान करा दिया की जो व्यक्ति आधी धूप और आधी छाया में आकार मुझसे मिलेगा मैं उसे 1000 अशर्फियों का इनाम दूंगा। यह ऐलान आग की तरह सब जगह फैल गयी और बीरबल को भी इस ऐलान का ज्ञात हो गया।

उस समय बीरबल एक गरीब ब्राह्मण के घर पर ठहरे हुए थे और ब्राह्मण द्वारा किए गए सेवा – सत्कार का वे उपकार चुकाना चाहते थे। इसके लिए बीरबल ने ब्राह्मण से कहा, “ हे ब्राह्मण, क्या आपको बादशाह द्वारा किए गए ऐलान के बारें पता है?” ब्राह्मण ने हाँ में सिर हिलाया। आगे बीरबल ने कहा, “ ब्राह्मण, जैसे मैं कहूँ अगर आप वैसे करेंगे तो 1000 अशर्फियाँ आपको मिल जाएंगी”। ब्राह्मण यह सुनकर खुश होते हुए हाँ में सिर हिलाया। 

बीरबल ने ब्राह्मण से कहा की कल आप अपने सिर पर चारपाई रखकर बादशाह से मिलने उनके दरबार जाना, सिर पर चारपाई रखने से आप आधी धूप और आधी छाया में रहेंगे। ब्राह्मण ने वैसे ही किया जैसा बीरबल ने कहा था, ब्राह्मण के दरबार पहुँचते ही अकबर समझ गए की यह युक्ति बीरबल की ही हो सकती है।

बादशाह ने ब्राह्मण से पूछा, “ क्या यह युक्ति आपकी है यह फिर आपको ऐसा करने के लिए किसी ने कहा है?” इसके जवाब में डरते हुए ब्राह्मण ने कहा, “ हुज़ूर काफी समय से मेरे घर पर एक मेहमान ठहरे हुए हैं, उन्होंने मुझे ऐसा करने के लिए कहा था”। यह सुनते ही अकबर को विश्वास हो गया की वह मेहमान बीरबल ही हैं, बादशाह ने गरीब ब्राह्मण को 1000 अशर्फियाँ बतौर इनाम दी और अपने सिपाहियों को आदेश दिया की वे बीरबल को राज्य वापस लेकर आयें। 

इस कहानी से मिलने वाली सीख –

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए और दूसरों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।  

8. कौवों की गिनतीअकबर बीरबल की कहानियाँ

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एक बार बादशाह अकबर, बीरबल और अपने मंत्रियों के साथ बगीचे में टहल रहे थे तभी उनकी नज़र आसमान में उड़ते हुए बहुत सारे कौवों पर पड़ी तभी उनके मन में बीरबल की बुद्धिमत्ता की परख करने की एक युक्ति सूझी। अकबर ने अपने मंत्रियों से पूछा की क्या आप में से कोई यह बता सकता है की इस राज्य में कितने कौवें हैं?

बादशाह यह अटपटा सा सवाल सुनकर सभी अचंभित हो गए और कहने लग गए की, “ जनाब, कौवों की सही संख्या बताना तो मुश्किल होगा”। फिर बादशाह बीरबल की तरफ देखते हुए बोले, “बीरबल, क्या तुम्हें इस प्रश्न का उत्तर पता है?” इसके जवाब में बीरबल ने कहा, “हुज़ूर, मुझे एक दिन का समय दीजिये, मैं आपको कल कौवों की संख्या बताऊंगा”। यह सुनकर अकबर ने बीरबल को एक दिन का समय दे दिया। 

अगले दिन बीरबल दरबार में पहुंचे, उनके पहुँचते ही अकबर ने उनसे कौवों की कुल गिनती के बारें में पूछा। प्रश्न का उत्तर देते हुए बीरबल ने कहा, “ जनाब, इस राज्य में कुल 85,330 कौवें हैं”। यह सुनकर अकबर के साथ – साथ दरबार में बैठे सभी चौक गए की बीरबल इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं की इस राज्य में इतने ही कौवें हैं।

इस पर अकबर ने बीरबल से पूछा, “यदि तुम्हारे की हुई गिनती से कौवें की संख्या ज्यादा हुई तो?” इस पर बीरबल ने कहा, “ हुज़ूर, यह भी तो संभव है की यहाँ रह रहे कुछ कौवों के रिश्तेदार उनसे मिलने आए हों, तो इस अवस्था में कौवों की संख्या ज्यादा हो सकती है”।

यह सुनकर पुनः अकबर ने बीरबल से पूछा,  “यदि तुम्हारे की हुई गिनती से कौवें संख्या कम हुई तो?” इस पर बीरबल ने फिर कहा, “ हुज़ूर, यह भी तो संभव है की यहाँ रह रहे कौवें अपने रिशतेदारों से मिलने पड़ोसी राज्य गए हों, तो इस अवस्था में कौवों की संख्या कम हो सकती है”। अपने अटपटे सवाल पर बीरबल का चतुराई भरा उत्तर सुनकर बादशाह को बहुत खुशी हुई। 

इस कहानी से मिलने वाली सीख –

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की किसी भी कठिन प्रश्न या स्थिति से घबराना नहीं चाहिए बल्कि अपनी बुद्धि का उपयोग करके उसका हल ढूँढना चाहिए।  

9. रेत और चीनी– Akbar-Birbal Ki Kahaniyan

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हमेशा की तरह बादशाह अकबर अपने मंत्रीगणों और सभापतियों के साथ अपने दरबार में बैठे हुए थे, राज्य संबन्धित कई बातें चल रही और साथ में अपनी प्रजा की समस्याओं को भी सुन रहे थे। तभी एक व्यक्ति हाथ में एक मर्तबान लेकर दरबार में प्रवेश करता है, यह देखकर अकबर उससे पूछते हैं की बताओ तुम्हारी क्या समस्या है।

यह सुनकर वह बोलता है, “ जनाब, मैंने आपके नवरत्न, बीरबल की बुद्धिमत्ता के बहुत से किस्से सुने हैं लेकिन अगर आपकी आज्ञा हो तो आज मैं इनकी बुद्धिमत्ता परखना चाहता हूँ। मैं यह मर्तबान लेकर आया हूँ जिसमे रेत और चीनी का मिश्रण है, मैं चाहता हूँ की बीरबल पानी का इस्तेमाल किए बिना इस मिश्रण से चीनी को अलग करें”। यह सुनकर अकबर ने बीरबल से कहा, “ बीरबल, क्या तुम ऐसा कर सकते हो?” इस प्रश्न के उत्तर में बीरबल ने हाँ में सिर हिलाया। 

बीरबल ने उस व्यक्ति से उसका रेत और चीनी के मिश्रण वाला बर्तन लिया और बगीचे की और चल पड़े, उनके पीछे – पीछे बादशाह, मंत्रीगण और वह व्यक्ति भी चल पड़ा। बगीचे में पहुँचकर बीरबल ने उस मिश्रण को आम के पेड़ के चारों ओर गिरा दिया और व्यक्ति से कहा कल सुबह तक इस मिश्रण की चीनी और रेत दोनों अलग – अलग हो जाएँगे।

अगली सुबह अकबर, बीरबल, वह व्यक्ति और सभी लोग उस पेड़ के पास पहुंचे और वहाँ देखते हैं की पेड़ के आस – पास रह रही चीटीयों ने मिश्रण में से चीनी के दानों को ले जाकर अपने बिल में इकट्ठा कर लिया है और पेड़ के आस – पास सिर्फ रेत रह गयी है। यह देखकर बीरबल ने उस व्यक्ति से कहा, “देखिये आपके रेत और चीनी के मिश्रण में से रेत और चीनी दोनों ही अलग हो गए हैं”। बीरबल के इस चतुराई भरे जवाब से सभी अचंभित हो गए और बादशाह अकबर बहुत खुश हुए। 

इस कहानी से मिलने वाली सीख –

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की हमे खुद पर विश्वास रखना चाहिए और किसी भी कारणवश किसी को भी नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। 

10. गलत आदत– Akbar-Birbal Ki Kahaniyan

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एक बार की बात है की बादशाह अकबर बहुत दिनों से किसी बात से अत्यधिक विचलित थे उनकी यह अवस्था देखकर मंत्रियों तथा सभापतियों ने उनके विचलित होने का कारण पूछा। इसका जावाब देते हुए अकबर ने कहा, “ हमारे छोटे शहजादे को अंगूठा चूसने की गलत आदत लग गयी है और बहुत कोशिशों के बाद भी यह आदत नहीं छूट रही है।

तभी सभा में से एक सभापति ने बादशाह को एक राय देते है हुए कहा, “ जहाँपनाह, एक बहुत पहुंचे हुए फकीर है जिनके पास हर समस्या का समाधान होता है, आप उन्हें यहाँ बुलवायें वे इस समस्या का भी समाधान निकाल सकते हैं”। यह सुनकर अगले ही दिन बादशाह ने उनको अपने दरबार में बुलवाया और अपनी समस्या बताई, समस्या सुनकर उस फकीर ने बादशाह से एक हफ्ते का समय मांगा।  

एक हफ्ते बाद वह फकीर फिर दरबार में आया और उसने शहजादे को समझाया और कहा की अंगूठा चूसना एक गलत आदत है। फकीर के समझाते ही शहजादे मान गए और उन्होंने वादा किया की वे अंगूठा कभी नहीं चूसेंगे। उस फकीर ने कुछ ही समय में समस्या का समाधान कर दिया, यह देखकर एक सभापति ने अकबर से कहा, “ जनाब, इस समस्या का समाधान अगर इतने कम समय में हो सकता था तो इस फकीर ने इतना समय क्यूँ मांगा, इस तरह से तो उसने आपका और दरबार का समय खराब किया है”।

यह सुनकर अकबर को भी सभापति की बात पर विश्वास हो गया और उन्होंने उस फकीर को सजा देने का आदेश दिया। अकबर के इस आदेश पर सभी हामी भर रहे थे लेकिन बीरबल शांत थे, यह देखकर अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल, क्या तुम मेरे आदेश से सहमत नहीं हो?”

इसके उत्तर में बीरबल ने कहा, “जहाँपनाह, मैं आपके आदेश से सहमत नहीं हूँ और इसका कारण भी है। उस फकीर ने एक हफ्ते का समय इसलिए मांगा था क्यूंकी जब वह फकीर पहली बार दरबार में आया था तो उसे चूना खाने की आदत थी। उसने एक हफ्ते के समय के दौरान पहले अपनी गलत आदत को दूर किया और फिर वह शहजादे को समझाने आया”। यह सुनकर अकबर को अपनी गलती का एहसास हुआ, उन्होंने फकीर से माफी भी मांगी। 

इस कहानी से मिलने वाली सीख –

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की दूसरों के व्यक्तित्व में कमी निकालने से पहले हमें अपनी कमियों को दूर करना चाहिए और एक अच्छा इंसान बनना चाहिए।    

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